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हर आँगन में दीप

मेरा आईना
मेरा आईना
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चकाचौंध गर ना हुआ, किसको है परवाह।
दीया इक घर घर जले, यही सुमन की चाह।।

रात अमावस की भले, सुमन तिमिर हो दूर।
दीप जले इक देहरी, अन्धेरा मजबूर।।

हाथ पटाखे हैं लिए, सुमन खुशी यह देख।
कुछ बच्चे बस देखते, यही भाग्य का लेख।।

कैसी दीवाली सुमन, मँहगाई की मार।
और मिलावट भी यहाँ, क्यों दिल्ली लाचार?

स्वाति बूंद की आस में, सुमन साल भर सीप।
अन्धकार दिल से मिटे, हर आँगन में दीप।।

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